12वी शताब्दी के पूर्व होने का उल्लेख है। बामनवाड़ जी पंचतीर्थी का एक तीर्थ स्थान नाणा है। त्रिभुवन मंत्री के वंशज नारायण भूता ने साहराव नाम का अरठ भगवान् की पूजा सेवा के लिए भेंट दिया था, उस समय उपकेश गच्छ के आचार्य श्री सिंहसूरीजी विद्यमान थे। शिलालेख पर वि सं 659 भादरवा शुक्ल 7 का लेख उत्कीर्ण होना बताया गया है। तीर्थ पर ज्येष्ठ वदि 6 को ध्वजा चढ़ाई जाती है।
प्रभु की व मंदिर की कला अद्भुत है व हसमुख और मन मोहक भी है। प्रतिमाजी के आस पास व मंदिर के कलात्मक तोरण देखने योग्य है। यहाँ पर प्राचीन काल का पाषाण का नंदीश्वर द्वीप बना हुआ है जो बहुत आकर्षक है। पट्ट पर वि सं 1274 कस लेख उत्कीर्ण है। इसके अतिरिक्त एक अन्य जिनालय श्री मुनिसुव्रत स्वामी जी का भी है जिसका जीर्णोद्धार एवं प्रतिष्ठा 16/5/2013 को संपन्न हुई थी।
यहाँ से नाणा रेल्वे स्टेशन 3 किलोमीटर दूर है। यहाँ पर धर्मशाला एवं भोजनशाला की अति उत्तम व्यवस्था है। नक्काशी व कला देखने योग्य है। परिक्रमा क्षेत्र में चित्र पट्ट आकर्षक रूप से बने हुए है।
नाणा तीर्थ से ही छः पीढ़ी के सदस्य देलवाड़ा गांव में आकर बसे थे उनमे से तीन परिवार आज भी विद्यमान है। ये नेणा महात्मा ब्राह्मण कहलाते है।
उनसे सम्पर्क करने पर उन्होंने बताया कि नाणा नगर पहले बहुत विशाल एवं विकशित था, बाद में वहां पर धीरे धीरे विकास कम होता गया जिससे उनके पूर्वज रोजी रोटी कमाने के लिए देलवाड़ा में जाकर बसे उनका यह कहना है कि उनके पूर्वज 500 वर्ष पहले यहां आये। उनका भी यह कहना है कि नाणा तीर्थ हज़ारो साल पुराना है।